ख्वाहिश-ए-ज़िंदगी बस

ख्वाहिश-ए-ज़िंदगी बस
इतनी सी है अब मेरी,
कि साथ तेरा हो और
ज़िंदगी कभी खत्म न हो।

बिन बोले जो तुम कहते हो

बिन बोले जो तुम कहते हो
बिन बोले ही वो सुन लूँ मैं,
भरके तुमको इन आँखों में
कुछ ख्वाब नए से बुन लूँ मैं।

घायल कर के मुझे उसने पूछा,

घायल कर के मुझे उसने पूछा,
करोगे क्या फिर मोहब्बत मुझसे,
लहू-लहू था दिल मेरा मगर
होंठों ने कहा बेइंतहा-बेइंतहा।

नज़रे करम मुझ पर इतना न कर, 

नज़रे करम मुझ पर इतना न कर,
की तेरी मोहब्बत के लिए बागी हो जाऊं,
मुझे इतना न पिला इश्क़-ए-जाम की,
मैं इश्क़ के जहर का आदि हो जाऊं।

अब जानेमन तू तो नहीं

अब जानेमन तू तो नहीं,
शिकवा -ए-गम किससे कहें
या चुप हें या रो पड़ें,
किस्सा-ए-गम किससे कहें।

लिखना था कि

लिखना था कि
खुश हैं तेरे बगैर भी यहां हम,
मगर कमबख्त…
आंसू हैं कि कलम से
पहले ही चल दिए।

बदल जाओ वक्त के साथ

बदल जाओ वक्त के साथ
या फिर वक्त बदलना सीखो
मजबूरियों को मत कोसो
हर हाल में चलना सीखो

होंठो ने मुस्कुराने से मना कर दिया..

होंठो ने मुस्कुराने से मना कर दिया..
आंसुओं ने बह जाने से मना कर दिया..
एक बार जो दिल टूटा प्यार में..
फिर इस दिल ने दिल लगाने
से मना कर दिया..