कुछ मैं भी थक गयी हूँ उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते;
कुछ ज़िंदगी के पास भी मोहलत नहीं रही;
उसकी एक-एक अदा से झलकने लगा था खलूस;
जब मुझ को ही ऐतबार की आदत नहीं रही।
जोक्स और शायरी हिंदी में
कुछ मैं भी थक गयी हूँ उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते;
कुछ ज़िंदगी के पास भी मोहलत नहीं रही;
उसकी एक-एक अदा से झलकने लगा था खलूस;
जब मुझ को ही ऐतबार की आदत नहीं रही।